अम्बिकापुर– अपनी अजीबोगरीब कलगुज़ारिओं के लिए कुख्यात संत गहीरा गुरु सरगुजा विश्वविद्यालय की हालत बद से बद्दतर हो चुकी है। निकट भविष्य में इसकी हालत सुधरने की बजाय और अधिक बिगड़ने के हीं आसार नज़र आते हैं। भ्रष्टाचार और बदइंतजामी के क्षेत्र में अनेक कीर्तिमान गढ़ते हुए इस विश्वविद्यालय ने ऐसे ऐसे रिकॉर्ड कायम किए हैं, जिन्हें तोड़ पाना छत्तीसगढ़ तो क्या पूरे भारत महान के किसी विश्विद्यालय के बूते की बात नहीं हैं। अतरंगी और अजूबे कुलपतियों की नियुक्ति के लिए देश भर में चर्चित यह विश्वविद्यालय आज तक अपनी हालत पर रोने के सिवा किसी और काम का नहीं रहा। शिक्षा के क्षेत्र में फिसड्डी और कागजों में ढेर सारे एमओयू की पुंगी बजाने के लिए जाना जाने वाला सरगुजा विश्वविद्यालय आज उस महान विभूति का नाम मिट्टी में मिलाने की ओर तीव्रता से अग्रसर है, जिन्हें सरगुजा और छत्तीसगढ़ में महान समाज सुधारकों के रूप में एक संत के तौर पर पूजा जाता है।
संत गहरा गुरु विश्वविद्यालय की स्थापना सरगुजा विश्वविद्यालय के रूप में 2 सितंबर 2008 को हुई थी। स्थापना के वक़्त इस विश्वविद्यालय से लगभग 75 महाविद्यालय संबद्ध थे। जाहिर है समय के साथ साथ संबद्ध महाविद्यालयों की संख्या में इजाफा जरूर हुआ होगा। इसके साथ ही इजाफा हुआ है विश्वविद्यालय की कारिस्तानियों में, इजाफा हुआ भ्रष्टाचार में, इजाफा हुआ बदइंतज़ामियों में और इजाफा हुआ विश्वविद्यालय की कुख्याति में। अपनी स्थापना के बाद के कई साल तक यह विश्वविद्यालय अनोखे कुलपतियों की वजह से चर्चा में रहा। फिर कई सालों तक एक दीक्षांत समारोह का आयोजन नहीं करा पाने के लिए सुर्खियों में रहा। एक कुलपति की कुर्सी गँवा कर जैसे तैसे दीक्षांत समारोह आयोजित कर पाने वाला विश्विद्यालय एक कुलपति की रंगीनमिजाजी और उसकी मनमानियों के लिए चर्चाओं में रहा। विश्वविद्यालय की
साख धूमिल होता देख सरकार ने उसे पद से हटाने की पैरवी की, बाद में राजभवन से उसे हटाने का आदेश पारित हुआ। हाई कोर्ट से किसी तरह का आदेश लेकर वही कुलपति एक बार फिर अपनी कुर्सी हड़पने पहुंच चुका था। बाद में उसे क़ानून का अनुपालन कर किसी तरह हटाया गया। बताया जाता है की कई दिनों तक यह विश्वविद्यालय दो कुलपतियों की नूराकुश्ती का अखाड़ा बना रहा। ऐसी अनेक कहानियाँ इस अनोखे विश्वविद्यालय से जुड़ी हैं; सबका जिक्र एक साथ कर पाने का सामर्थ्य तो शायद ही किसी मनुष्य में हो!
विश्वविद्यालीन परीक्षा परिणामों में देरी, परिणाम में गड़बड़ियों के लिए अक्सर अखबारों सुर्खियों का हिस्सा बने रहने वाला विश्वविद्यालय आज अपने बाद स्थापित हुए विश्वविद्यालयों से कोसों पीछे छूट चुका है। इसकी स्थापना वर्ष में ही शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय इसकी तुलना में बेहतर स्थिति में है। वर्ष 2012 में बिलासपुर में अटलबिहारी बाजपेयी यूनिवर्सिटी और 2015 में दुर्ग में हेमचंद यादव विश्विद्यालय की स्थापना की गई थी। इन दोनों विश्वविद्यालयों की सफलताओं और वर्तमान स्थिति के सामने संत गहीरा गुरु विश्वविद्यालय की तुलना भी बेमानी ही होगी। सुदूर आदिवासी क्षेत्र में जिन उद्देश्यों के साथ विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी उन उद्देश्यों को पूरा कर पाने में यह विश्वविद्यालय पूरी तरह नाकाम रहा है। जरूरत है कि एक बार फिर से विश्वविद्यालय के रिफॉर्म के लिए सरकार को कदम उठाये और विश्वविद्यालय में व्याप्त गड़बड़ियों और इन गड़बड़ियों की वजह बने अधिकारियों पर उचित और निर्णायक कार्रवाई की जाए। वरना यह विश्वविद्यालय लगातार महान संत गहिरा गुरु का नाम मिट्टी में मिलाता रहेगा और जिम्मेदार पदों पर बैठे निकम्मे अधिकारियों को ऐसे कृत्य करते लेश मात्र की भी लज्जा ना आएगी।