डॉ. उपेन्द्र गुप्ता- छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न नक्सल प्रभावित राज्यों में माओवादी कैडर्स और कार्यकर्ताओं के आत्मसर्पण और पुनर्वास की लगातार आ रही ख़बरों से यह कयास लगाये जा रहे हैं कि देश में जल्द ही लाल आतंक का सफाया हो जाएगा। देश के गृह मंत्री में भी नक्सलवाद के सफ़ाये के लिए 31 मार्च 2026 की तारीख मुकर्र की है। छत्तीसगढ़ में बेहतर नक्सल पुनर्वास नीति ने नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया है। माड़ क्षेत्र में सक्रिय नक्सल संगठन के समस्त नक्सल नेताओं और कार्यकर्ताओं के आत्मसर्पण के बाद यह कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में फिलहाल कोई नक्सल संगठन सक्रिय नहीं है। हालांकि बटालियन ने अब तक आत्मसमर्पण नहीं किया है और ना ही उनकी तरफ़ से इस दिशा में कोई पहल अब तक की गई है। माना जाता है कि बटालियन की कमान अब मोस्ट वांटेड नक्सल लीडर हिडमा के पास है। हिडमा को जानने वाले लोग बताते हैं हिडमा आसानी से आत्मसमर्पण जैसा कदम उठाने वालों में से नहीं है। हालांकि इस बात में कोई दोराय नहीं कि लगातार बड़े नेताओं के एनकाउंटर और ब्यूरो में वरीय पाँच नेताओं के आत्मसर्पण के बाद से माओवादी संगठन अब बेहद कमजोर स्थिति में हैं। बावजूद इसके इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि माओवाद एक विचारधारा है, जिसे किसी बंदूक की गोली से ख़त्म कर पाना इतना आसान नहीं है।
देश में नक्सलवाद के जन्म से लेकर आज तक के इतिहास पर नज़र डालें तो हम पाएंगे कि नक्सल आंदोलन कई बार कमजोर पड़ा है लेकिन कुछ समय बाद फिर से सर उठाने का भी ट्रेंड देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ की बात करें तो उत्तर छत्तीसगढ़ को इस तरह देखा जा सकता है जहाँ नक्सलवाद ने सबसे पहले पांव पसारे थे। आज इस क्षेत्र मनक्सलवाद का पूरी तरह सफाया हो चुका है। बस्तर संभाग के चार जिले के बाशिंदे अब भी लाल आतंक के साये में जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं। छत्तीसगढ़ में बस्तर से इतर मोहेला मानपुर, महाराष्ट्र से लगे इलाके और गरियाबंद के कुछ हिस्सों में नक्सलवाद का प्रभाव देखा जा सकता है।हाल ही में 16 अक्टूबर को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सोनू दादा (मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति) ने 61 साथियों समेत और 17 अक्टूबर को बस्तर के माड़ क्षेत्र में रूपेश दादा (उर्फ सतीश) ने 210 माओवादियों के साथ हथियार डाल दिए। कुल 271 माओवादियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा में लौटने का फैसला लिया है। इस तरह अब गढ़चिरौली जोनल कमेटी के आत्मसमर्पण के बाद इन महाराष्ट्र से सटे इलाकों में फिलहाल नक्सल मूवमेंट थमा हुआ दिखाई पड़ता है। इसी तरह गरियाबंद और उससे लगे क्षेत्र की ओर नज़र डाले तो पाएंगे कि यह क्षेत्र उदंती एरिया कमेटी के प्रभाव क्षेत्र में आता है। उदंती एरिया कमेटी ने भी पूर्व में अनेक बड़ी नक्सली घटनाओं को अंजाम दिया है लेकिन अब यह संगठन भी आत्मसर्पण की दिशा में पहल करने को तैयार है। उदंती एरिया कमेटी के सुनील ने आत्मसमर्पण के लिए सरकार के साथ संवाद हेतु जारी अपने पत्र में कहा, “सुरक्षा बलों का बढ़ता दबाव और बदलती परिस्थितियों ने सशस्त्र आंदोलन को मुश्किल बना दिया है। केंद्रीय समिति की रणनीतिक चूक के कारण हमें यह कदम उठाना पड़ रहा है। सभी माओवादी साथी हिंसा छोड़कर जनांदोलनों के जरिए जनता की समस्याओं का समाधान करें।” उन्होंने गोबरा, सीनापाली, एसडीके और सीतानदी यूनिट्स से गरियाबंद में आत्मसमर्पण करने का आह्वान किया और जनता से अनुरोध किया कि यह संदेश अन्य माओवादी साथियों तक पहुंचाया जाए। संपर्क के लिए नंबर (9329913220) साझा किया गया है।
इस तरह बड़ी संख्या में माओवादिओं के आत्मसमर्पण और आत्मसमर्पण के लिए तैयार अनेक नक्सल संगठनों से संबंधित ख़बरें सुखद एहसास तो दिलाती है लेकिन साथ में मन में यह सवाल भी पैदा होता है कि माओवादिओं को ख़त्म कर देने या उन्हें हथियार छोड़ मुख्यधारा में ला कर माओवाद की विचारधारा को भी ख़त्म कर पाना संभव है ?
एक बड़ा तबका एनकाउंटर में मारे जाने वाले नक्सलियों को शहीद समझता है। नक्सल मूवमेंट में उच्च शिक्षित प्रोफेशनल्स भी बड़ी संख्या में शामिल हैं, ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या इस तरह के आत्मसमर्पण और बड़ी संख्या में एनकाउंटर का डर आने वाले समय में युवाओं को नक्सल आंदोलन में शामिल होने से रोक पाएगा। हालांकि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, झारखंड सहित लगभग सभी नक्सल प्रभावित राज्यों ने नक्सल पुनर्वास नीति लागू की है लेकिन इन पुनर्वास नीतिओं में कई तरह की खामियां हैं जिन्हें समय रहते दूर करने की जरूरत है, ऐसा नहीं किए जाने पर पुनर्वास नीति से मोह भंग होने की संभावना बराबर बनी रहती है। छत्तीसगढ़ में एक बेहतर पुर्नवास नीति होने के बावजूद नक्सली तेलंगाना, महाराष्ट्र या उड़ीसा जैसे राज्यों में आत्मसमर्पण करना चाहते हैं। आख़िर ऐसी क्या कमी है हमारी पुनर्वास नीति में इस बात की विवेचना की जानी चाहिए और समय समय पर इसमें बदलाव होने से आगे चलकर एक बेहतर पुनर्वास नीति युवाओं को नक्सल मूवमेंट से मुख्यधारा में लाने में महती भूमिका निभा सकती है। हालांकि यह सवाल अब भी बरकरार है कि माओवादियो को खत्म किया जा सकता है लेकिन क्या माओवाद की विचारधारा को भी पूरी तरह खत्म कर पाना संभव है। इसके साथ एक सवाल यह भी कि नक्सलवाद के सफ़ाये से देश में आंतरिक आतंकवाद का मसला सुलझ जाएगा?
