50% की लक्ष्मण रेखा पर SC का निर्णायक रुख

 

50% की लक्ष्मण रेखा पर SC का निर्णायक रुख: MP और CG आरक्षण विवाद में अंतिम फैसला जल्द

 सरकारी त्रुटि के कारण CG की नई भर्तियों पर संकट, MP को अंतरिम राहत से इनकार

नई दिल्ली: देश में आरक्षण की संवैधानिक लड़ाई अब अपने सबसे निर्णायक और अंतिम चरण में है। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मध्य प्रदेश (MP) और छत्तीसगढ़ (CG) के आरक्षण विवादों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि न्यायालय अब इंदिरा साहनी फैसले की 50% सीमा के उल्लंघन पर निर्णायक मुहर लगाने की तैयारी में है। सुप्रीम कोर्ट ने MP मामले को अलग कर, अंतरिम राहत देने से इनकार करते हुए सीधे अंतिम सुनवाई का फैसला लिया है, जो इस कानूनी युद्ध में एक बड़ा मोड़ है।

.छत्तीसगढ़ का कानूनी इतिहास: सरकारी त्रुटि और अनिश्चितता

छत्तीसगढ़ ने 2012 में आरक्षण को 50% की सीमा से ऊपर 58% तक बढ़ाया था।

HC द्वारा खारिज : इस वृद्धि को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (HC) ने 19 सितंबर 2022 को खारिज (Quashed) कर दिया।

SC की सीमित राहत : राज्य सरकार की अपील पर, सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई 2023 को एक सीमित अंतरिम आदेश दिया, जिसमें HC के फैसले से पहले विज्ञापित लंबित रिक्तियों को ही परिणाम के अधीन पूरा करने की अनुमति दी गई।

सरकारी त्रुटि का दुष्प्रभाव : इसके बावजूद, राज्य सरकार की कई एजेंसियों ने यह मान लिया कि वे 1 मई 2023 के बाद विज्ञापित नई रिक्तियों में भी संशोधित 58% नियम लागू कर सकती हैं।

न्यायिक स्पष्टता और संकट इस भ्रम को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की प्रशासनिक शाखा ने दूर किया। RTI के जवाब में, हाई कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की समिति ने स्पष्ट किया है कि हाई कोर्ट के मूल आदेश पर कोई स्टे नहीं है, इसलिए 1 मई 2023 के बाद विज्ञापित रिक्तियों पर 50% की सीमा ही लागू होगी।

परिणाम: राज्य सरकार की इस गलत व्याख्या के कारण, 1 मई 2023 के बाद 58% रोस्टर पर निकाली गई भर्तियों पर बुरा असर पड़ना तय है। इन भर्तियों में शामिल हुए हजारों उम्मीदवारों का भविष्य कानूनी अनिश्चितता के घेरे में आ गया है।

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार का दांव और सुप्रीम कोर्ट का निर्णायक रुख

मध्य प्रदेश सरकार ने 2019 में OBC आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था। MP हाई कोर्ट ने इस वृद्धि पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद MP सरकार ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित (Transferred) कराया।

इंटरिम राहत की मांग: MP सरकार की मंशा थी कि उन्हें भी छत्तीसगढ़ की तरह ही अंतरिम आदेश मिल जाए, ताकि 27% OBC आरक्षण लागू किया जा सके।

SC का इंकार: सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ का अंतरिम आदेश अत्यंत सीमित था और केवल पुरानी लंबित भर्तियों के लिए था तथा इस तर्क पर भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार महता ने भी सहमति जताई । न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने इस तर्क को स्वीकार किया और MP मामले में अंतरिम राहत देने से स्पष्ट इनकार कर दिया।

अंतिम सुनवाई की दिशा: संवैधानिक वैधता पर फोकस

सुप्रीम कोर्ट ने अब दोनों राज्यों के मामलों को अलग (Segregate) कर दिया है। MP मामले को अंतरिम आदेश देने के बजाय, कोर्ट ने 2019 अधिनियम की संवैधानिक वैधता की जांच के लिए अंतिम सुनवाई हेतु सूचीबद्ध किया है। MP मामले के निष्कर्ष के तुरंत बाद छत्तीसगढ़ मामले पर सुनवाई की जाएगी।

सरकार की टालमटोल और कानूनी विसंगति

सुप्रीम कोर्ट में MP मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के रवैये और उसके फैसलों पर गंभीर प्रश्न उठे। याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तथ्य सामने आया कि राज्य सरकार पिछले 3-4 महीनों से मामले को लगातार टाल रही थी।

न्यायालय का यह कदम दिखाता है कि वह अब अंतरिम राहत के कानूनी दांव-पेंच से हटकर 50% सीमा के उल्लंघन और संवैधानिक मर्यादाओं पर सीधे अंतिम निर्णय चाहता है। यह फैसला लाखों युवाओं के भविष्य को तय करेगा और देश में आरक्षण नीति की अंतिम कानूनी रूपरेखा निर्धारित करेगा।

 

 

 

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