जानिये बिहार का मुख्यमंत्री बनने का दो बार प्रस्ताव ठुकराने वाले, दुनिया के पहले न्यूक्लियर प्लांट का डिज़ाइन करने वाले बाबा कार्तिक उरांव के बारे में, जिनके नाम पर हो रही है आज सबसे ज़्यादा चर्चा

डॉ. उपेन्द्र गुप्ता- बाबा कार्तिक उरांव की जन्म शताब्दी के मौके पर अंबिकापुर में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने उनके नाम पर चौक के निर्माण के लिए भूमिपूजन किया। इस कार्यक्रम के बाद सोशल मीडिया में बाबा कार्तिक उराव को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। एक ओर एक बड़ा वर्ग बाबा कार्तिक उरांव के पक्ष के तो कुछ लोग विपक्ष में चर्चा कर रहे हैं। ऐसे में एक जिम्मेदार मीडिया के दायित्वों का निर्वहन करते हुए हम आपको आज बाबा कार्तिक उरांव के बारे में वो सब जानकारी देने जा रहे हैं, जो आपको कहीं भी इतने विस्तार से नहीं मिल सकती ।

प्रख्यात शिक्षाविद, महान इंजीनियर, समाजसेवक और सफल राजनेता रहे बाबा कार्तिक उरांव का वैसे तो सरगुजा या छत्तीसगढ़ से सीधा जुड़ाव नहीं रहा लेकिन डीलिस्टिंग आंदोलन के अगुआ के रूप में सरगुजा संभाग का एक बड़ा जनजाति समुदाय उनका अनुयायी है। बाबा कार्तिक ओरांव अविभाजित सरगुजा के जशपुर तक आ चुके हैं, जहाँ उनके कार्यक्रम के 1 लाख से ज़्यादा लोग उनके कार्यक्रम में शामिल हुए थे, जो अपने आप में उस वक़्त के हिसाब से एक रिकॉर्ड है।
अविभाजित बिहार, वर्तमान झारखण्ड कें गुमला जिले के सिसई प्रखंड के नेताटोली गांव में 29 अक्टूबर 1924 को उरांव परिवार में बाबा का जन्म हुआ था। वह प्ररंभ से ही मेधावी रहे। गरीब परिवार में जन्म होने के बावजूद अपनी मेधा के दम पर इंजिनियरींग की पढई पुरी की। सिर्फ भारत हीं नहीं बल्कि ब्रिटेन में भी पढाई की। ब्रिटेन में 10 से ज्यादा डिग्री और डिप्लोमा हासिल करने वाले बाबा कार्तिैक उरांव विश्व के सबसे पहले न्यूक्लियर पावर प्लांट का डिजाईन करने वाले इंजीनियर रहे हैं, आज भी नियुक्लियर प्लांट के शिलापट्ट में उनका नाम दर्ज है।भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के ब्रिटेन प्रवास के दौरान उनके बुलावे पर वह देश में वापस आये और देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। भारत वापस आकर उन्होंने पीडबल्यूडी में सहायक अभियंता के रूप् में सेवा शुरू की और सहायक मुख्य अभियंता जैसे बडे पद पर रहे।

आदिवासियों को उनका हक और आरक्षण ना मिलता देख उन्होंने राजनीति की ओर रूख किया और वर्ष 1962 में अविभाजित बिहार की लोहड़दगा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, हालांकि उन्हें अपने पहले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा लेकिन अगले आम चुनाव 1967 में लोहड़दगा सीट से ही जीत कर वह संसद पहुंच गए। अपनी राजनीति में उन्होने देश के आदिवासी समुदाय को सर्वोपरि रखा और जीवन पर्यन्त उनके लिए आवाज़ उठाते रहे। आदिवासी समुदाय की सेवा करते हुए बाबा कार्तिक उरांव ने 8 दिसंबर 1981 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

बिहार का मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दो बार ठुकराया-

सरगुजा जिला भाजपा क उपाध्यक्ष इन्दर भगत बाबा को याद करते हुए बताते हैं कि बाबा ने इस बात से आहत होकर राजनीति का रास्ता चुना था कि उनके समुदाय को आरक्षण का पूरा लाभ नहीं मिल रहा था और आरक्षण का ज़्यादा लाभ वो लोग उठा रहे थे जो मूल रूप से आदिवासी नहीं थे। सांसद के रूप में चुने जाने के बाद बाबा कार्तिक ओरांव ने इस मामले को संसद में प्रमुखता से उठाया और एक निजी विधेयक भी इस संबंध में ले कर आए थे। उन्होंने हस्ताक्षर अभियान के तहत डीलिस्टिंग के पक्ष में 300 सेज़्यादा संसद सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित अभ्यावेदन सदन की पटल पर रखा था । यही नहीं उनकी पहल पर ही 33 सदस्यीय जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी(JPC) का गठन किया गया था। इस कमेटी में लोकसभा के 22 और राज्यसभा के 11 सदस्य शामिल थे। कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में बाबा कार्तिक ओरांव के दावों को सही माना था। भगत बताते हैं कि बाबा को दो बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव मिला था, लेकिन उन्होंने आदिवासी समुदाय की सेवा के लिए यह प्रतिष्ठित पद भी ठुकरा दिया था। भगत बताते हैं कि बाबा देश में डीलिस्टिंग अभियान के अगुआ रहे हैं और आज देश भर में चल रहा डीलिस्टिंग अभियान उनके द्वारा सुझाए गए रास्ते पर चल रहा है। बाबा कार्तिक ओरांव ने ना सिर्फ आदिवासी समुदाय के लिए कार्य किए हैं बल्कि उन्होंने देश के प्रत्येक समुदाय और वर्ग के लिए काम किया है।बाबा कार्तिक ओरांव ने। आदिवासी समुदाय की सुरक्षा के लिए अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की भी स्थापना की थी, जो आज देश के 29 राज्यों में कार्य कर रही है।

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