डॉ. उपेन्द्र गुप्ता- बिहार चुनाव में इस बार मतदाताओं ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। चुनाव आयोग की ओर से जारी अनंतिम आंकड़ों के अनुसार पहले चरण में बिहार में 64.69 प्रतिशत की वोटिंग हुई। पहले चरण में बिहार के 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान के बाद 16 मंत्रियों समेत 1314 अभ्यर्थियों कि किस्मत ईवीएम में क़ैद हो गई। आम तौर पर मतदान में होने वाली अप्रत्याशित वृद्धि को एंटी इनकंबेंसी से जोड़कर कर देखा जाता है। हालांकि इतनी जल्दी इस विषय में कुछ कह पाना अतिशयोक्ति होगी। बिहार के मतदाताओं ने अमूमन हर चुनाव में चौंकाया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आख़िर बिहार में वोटर टर्न आउट का रिकॉर्ड कैसे टूटा? आख़िर 75 साल में इतनी वोटिंग क्यों हुई?
इस अप्रत्याशित वोटर टर्न आउट के कारण तलाशें तो कई कारण बताए जा रहे हैं। सबसे पहला कारण एसईआर को माना जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि मतदाता सूची से नाम कटने के डर से मतदाताओं ने जमकर वोटिंग की। एक कारण छठ पूजा के ठीक कुछ दिनों के बाद चुनाव होना माना जा रहा है। अप्रवासी बिहारी मतदाता छठ पूजा के दौरान अपने अपने घर आते हैं और कुछ दिनों के बाद ही वापस अपने काम पर लौटते हैं। अन्य राज्यों की तुलना में बिहार के लोगों को अपेक्षाकृत राजनीतिक रूप से जागरूक माना जाता है। ऐसे में मौक़ा मुफ़ीद हो तो बिहार के मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग ज़रूर करते हैं। अन्य कारणों में चुनावी प्रक्रिया को पहले की तुलना में और आसान बनाया गया है, जिसके कारण भी लोग बूथों तक पहुँच रहे हैं।
मतदान के आंकड़ों की बात करें तो बिहार के 18 जिलों में मतदान हुआ।इसमें मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर में सबसे अधिक मतदान हुआ।मुजफ्फरपुर में 70.96 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि समस्तीपुर में 70.63 प्रतिशत मतदान हुआ। मधेपुरा में 67.21 प्रतिशत मतदान हुआ, इसके बाद वैशाली में 67.37 प्रतिशत, सहरसा में 66.84 प्रतिशत, खगड़िया में 66.36 प्रतिशत, लखीसराय में 65.05 प्रतिशत, मुंगेर में 60.40 प्रतिशत, सीवान में 60.31 प्रतिशत, नालंदा में 58.91 प्रतिशत और पटना में 57 प्रतिशत मतदान हुआ।
पलायन, बेरोजगारी, शराबबंदी और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे भी वोट परसेंट बढ़ने के कारण-
बिहार चुनाव में पलायन और बेरोजगारी बड़े मुद्दे रहे, तक़रीबन हर पार्टी ने इस मुद्दे को अपने एजेंडे में शामिल किया। बेरोजगारी की समस्या को लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने बड़े बड़े वादे किये। जो युवाओं को मतदान के लिए प्रेरित करने वाले थे। इस वजह से भी युवाओं ने चुनाव में बढ़चढ़कर हिसा लिया।
शराबबंदी एक ऐसा मुद्दा रहा जो मुद्दा तो बड़ा था लेकिन प्रत्येक राजनीति दल इस मुद्दे पर सीधे तौर पर कोई वादा या दावा करने से बचते दिखाई दिए। हालांकि बिहार की राजनीति में सबसे नए खिलाड़ी जनसुराज पार्टी ने इस मुद्दे पर मुखरता से अपना पक्ष रखा। वहीं महिला सुरक्षा के मुद्दे और महिलाओं को आर्थिक सहयता जैसे दावे लगभग सभी पार्टियों ने किए, जिसकी वजह से महिलाओं ने भी अपने मत का जम के प्रयोग किया।
चुनावी परिणाम 14 नवंबर को आएंगे तब जाकर यह साफ़ होगा कि इस बार की बंपर वोटिंग का फायदा आख़िर किस दल को मिला है। इससे पहले बिहार के चुनावी इतिहास को कुछ आंकड़ों से समझते हैं- निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार 27 वर्ष बाद इतनी अधिक संख्या में मतदाताओं की सहभागिता देखने को मिली। 1998 के लोकसभा चुनाव में 64.66 प्रतिशत मतदान हुआ था।इस बार बिहार में पहले चरण में लगभग 65 प्रतिशत मतदाताओं ने अपना मत प्रयोग किया है, जो 1951 के बाद से अबतक सर्वाधिक है ।
वहीं, अगर विधानसभा चुनाव की बात करें तो आयोग के आंकड़ों के अनुसार 2000 के चुनाव में 62.57 प्रतिशत वोट पड़े थे।
इन आंकड़ों में बदलाव संभव हैं। पटना जिले में 58.40 प्रतिशत मतदान हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां उत्साह दिखा वहीं शहरी क्षेत्र उदासीन बना रहा। प्रदेश में सबसे कम मतदान कुम्हरार (39.57 प्रतिशत), बांकीपुर (40.97) और दीघा (41.4 प्रतिशत) में हुआ।
उधर, 2020 विधानसभा चुनाव की तुलना में सात प्रतिशत अधिक एवं लोकसभा चुनाव 2024 की तुलना में लगभग आठ प्रतिशत अधिक मतदाताओं ने अबकी बार अपने मताधिकार का प्रयोग किया हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में 57.29 एवं 2024 के लोकसभा चुनाव में 56.28 प्रतिशत मतदान हुआ था।
एंटी इंकॉम्बेसी भी एक फैक्टर-
बिहार में लंबे समय से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं ऐसे में लगातार एक ही चेहरे मुख्यमंत्री के तौर पर देख कर जनता का बोर होना भी लाजिमी है। बेरोजगारी दूर करने की दिशा में सरकार ने कोई ठोस रोडमैप भी राज्य की जनता के सामने नहीं रखा है । बिहार कैबिनेट में भी कुछ ऐसे लोगो को लगातार प्रमुख पद दिए जा रहे हैं जो नाम विवादित रहे है। शराबबंदी जैसे मुद्दे भी एंटी इंकमबेंसी को जन्म देते हैं। ऐसे में ठीक ठीक तो नहीं कहा जा सकता कि वोटों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह एंटी इंकॉम्बेसी रही लेकिन इस बात से साफ़ साफ़ इनकार भी नहीं किया जा सकता। पलायन एक बड़ा मुद्दा है जिस पर आने वाली सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है। अप्रवासी बिहारी मतदाताओं ने इसी उम्मीद में इस बार बड़ी संख्या में मतदान किया है। किसी भी चुनाव का अंतिम फैसला तो जनता के हाथ में होता है जबतक कि ईवीएम हैक ना कर लिए जाए जैसा की विपक्ष बार बार आरोप लगता है। वोट चोरी भी एक बड़ा मुद्दा रहा इस चुनाव में और आने वाले सभी चुनावों में विपक्ष इसे अच्छे से भुनाने की तैयारी में है। बिहार चुनाव के अगले चरण के लिए मतदान 11 नवंबर को होंगे। वहीं 14 नवंबर को मतदाताओं का फैसला भी सामने आ जाएगा तब जा कर साफ़ होगा कि बिहार के मतदाताओं ने 75 साल का रिकॉर्ड तोड़ कर अप्रत्याशित टर्न आउट से किसकी किस्मत का फ़ैसला किस तरह किया है। तब तक इंतज़ार कीजिए। इस यकीन के साथ कि परिणाम चौकाने वाले ज़रूर होंगे।